६५० भारत में अंगरेजी राज किया कि यदि आप सोंधिया के विरुद्ध अंगरेजों को मदद देंगे तो हमेशा के लिए आपका खिराज माफ़ कर दिया जायगा और चार लाख सालाना का एक नया इलाका आपको दिया जायगा। इस नए इलाके के लिए अंगरेजों ने राजा रणजीतसिंह को सनद भी लिख कर दे दी। किन्तु इन सब लाज़िशों के बाद भी दौलतराव सोंधिया की विशाल सेना को जीत सकना मार्किस वेल्सली के लिए श्रालान काम न था। इन सब के अतिरिक्त वेल्सली ने सींधिया की सेना के अन्दर विश्वास घातक पैदा किए। माधोजी सींधिया ने वारन हेस्टिंग्स के कहने में प्राकर कुछ यूरोपियन अफसरों को, जिनमें से अधिकतर सींधिया की सेना फ्रान्सीसी थे, अपनी सेना में उच्च पदों पर में विश्वास घातक यूरोपियन अफसर नियुक्त कर रखा था। अपने राज और विशेष कर अपनी सेना के अन्दर यूरोपनिवासियों को नौकर रखने से बढ़ कर घातक भूल कभी भी किसी भारतीय नरेश ने नहीं की। माधोजी सीधिया के उत्तराधिकारी को अब अपने पितामह की गलती का फल भोगना पड़ा। सींधिया की सेना का एक मुख्य सेनापति कप्तान पैरों, एक फ्रान्सीसी था, जिसके अधीन खास खास पदों पर और भी कई यूरोपनिवासी थे। ये सब लोग केवल धन के उपासक थे। मार्किस वेल्सली ने एक एलान प्रकाशित किया जिसमें उसने दौलतराव सींधिया के सब यूरोपियन मुलाजिमों को अपने मालिक
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