पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२४८

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साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार ६५७ के चित्त में कोई शका पैदा होने न पाए Ixxx मैं चाहता हूँ कि भाप इस विषय में पेशवा बाजीराव से बातचीत करके उसे समझा कि यह स्थान हमारे लिए कितना जरूरी है।xxxभाप पेशवा को यह भी विश्वास दिला दें कि लगान का ठीक ठीक हिसाब रक्खा जायगा और पेशवा का हिस्सा पेशवा को दिया जायगा ।" इसके बाद एक ही दिन के अन्दर वेल्सली ने और रुख बदला और १४ अगस्त सन् १८०३ को करनल क्लोज़ को लिखा- ____कल आपको पत्र लिखने के बाद मुझे यह खयाल पाया कि यह अधिक अच्छा होगा कि हम अहमदनगर का आधा लगान देने का पेशवा से वादा न करें अथवा इसकी प्राशा अभी उसे न दिखाएं, बल्कि भाम तौर पर उससे यह कह दें कि इस इलाके का लगान युद्ध का वर्ष पूरा करने के काम में लाया जायगा और हिसाब पेशवा के पास भेज दिया जायगा। किन्तु एक बड़ा काम यह है कि जिस तरह भी हो सके पेशवा को इस बात के लिए रजामन्द कर लिया जाय कि इलाके पर करना हमारा ही रहे क्योंकि पूना के साथ हमारा सम्बन्ध रहने के लिए यह स्थान अत्यन्त आवश्यक है, और यदि पेशवा इस बात के लिए रजामन्द हो सके तो उसे • “ I am very anxious that the Peshwa should feel no jealousy about this place (Ahmadnagar) . . I wish that you would speak to Raghunath Rao (e, the Peshwa Baji Rao son of Raghunath Rao) upon the subject, point out to him how necessary the place is for us, . . . you may also assure him that a faithful account shall be kept of the revenues, and credit given to the Peshwa for his portion of them."-General Wellesley's letter to Colonel Close, dated 13th August, 1803.