पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
६६१
साम्राज्य विस्तार

साम्राज्य विस्तार ६६१ पड़ चुका है। सम्भव है कि बे-छपे पत्रों में कहीं कुछ और भेद खुल सके। यह भी ज़ाहिर है कि अंगरेज़ जिस प्रकार सींधिया और भोसले के नाश के प्रयत्न कर रहे थे उसी तरह अपने 'मित्र' और 'साथी' पेशवा बाजीराव के नाश का भी पूरा इरादा कर चुके थे, और उसके साथ इस समय हर तरह के छल से काम ले रहे थे। पेशवा के मन्त्रियों को रिशवते देने के विषय में जनरल वेल्सली ने २८ सितम्बर को करनल क्लोज के नाम एक और पत्र में लिखा :- ___ "लॉर्ड वेल्सली ( गवरनर जनरल) ने पेशवा के मन्त्रियों को बड़ी बड़ी रकमें देने का निश्चय कर लिया है । किन्तु xxx "पेशवा का कोई मन्त्री है ही नहीं। पेशवा अकेला है, और अकेला क्या चीज़ है ! इसलिए मेरी राय में हमें उन लोगों को रुपए देने चाहिए जो पेशवा के मन्त्री समझ जाते हैं और मन्त्री कहलाते हैं, इसलिए नहीं कि सन्धि के उद्देशों के अनुसार वहाँ के शासन का काम चलाया जाय, जिस उद्देश से कि हम हैदराबाद में रुपए खर्च करते हैं, बल्कि इसलिए कि पेशवा की गुप्त सलाहों की सब खबरें हमें मिलती रहें, ताकि जब जरूरत हो हम पेशवा को समय पर रोक सकें।"* • "Lord Wellesley has taken up the question of paying the Peshwa's ministers upon agreat scale "The Peshwa has no ministers He is everything himselt and every- thing is little In my opinion, therefore, we aught to pay those who are supposed to be and are called his ministers, not to keep the machine of Government in motion, in consistence with the objects of the alkance as wedo at Hyderabad, but to have intelligence of what passes in the Peshwa's Secret