भारत में अंगरेजी राज मिल गए थे, श्रव फिर दिल्ली की नई संरक्षक सेना के विविध पदों पर नियुक्त कर दिए गए। २४ सितम्बर को जनरल लेक ने देहली से आगरे की ओर कूच किया। आगरे पहुँच कर कई दिन तक प्रागरे के किले अव्यवस्थित लडाई होती रही। किले के अन्दर पर कब्जा नीधिया की सेना ने पहले शत्रु का मुकाबला किया, फिर जनरल लेक के "गुप्त उपाय" के प्रताप से सींधिया के करीब ढाई हजार सिपाही श्रागरे के किले से निकल कर लेक की सेना में आ मिले । १७ अक्तूबर की शाम को किले की वाकी सेना ने इस शर्त पर कि उनकी जान और उनके माल की रक्षा की जायगी, किला अंगरेजों के सुपुर्द कर दिया। उत्तर में जनरल लेक के लिए अब केवल एक और लड़ाई लड़ना बाकी था। श्रागरे और ग्वालियर के खसवादी का बीच में इस समय एक और सन्नद्ध मराठा सेना संग्राम - थी, जिसमें कुछ दक्खिन से आई हुई थी और कुछ देहली की परास्त सेना शामिल थी। इस सेना के पास अनेक भारी तोपें भी थीं। पता चला कि यह सेना आगरे की ओर बढ़ रही है। २७ अक्तूबर को लेक इस सेना के मुकाबले के लिए श्रागरे से निकला। १ नवम्बर सन् १८०३ को आगरे के पास लसवाड़ी नामक स्थान पर दोनों ओर की सेनाओं में मुठभेड़ हुई। सींधिया के इन वफादार सैनिकों ने वीरता के साथ शत्रु का मुकाबला किया।२ नवम्बर को लेक ने एक 'गुप्त' पत्र में मार्किस वेल्सली को लिखा :-
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