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भारत में अंगरेज़ी राज

७३ भारत में अंगरेज़ी राज दक्खिन में करनल वैलेस के अधीन, और तीसरी गुजरात में करनल मरे के अधीन । जसवन्तराव होलकर के साथ अंगरेज़ों का जिस प्रकार अब युद्ध हुआ उसके मुकाबले में मालूम होता है कि दौलतराव सींधिया और राघोजी भोसले के साथ उनका युद्ध केवल बच्चों का खेल था। पिछले युद्ध में सींधिया के अहमदनगर, अलोगढ़ और कोएल जैसे सुदढ़ किले केवल रिशवतों द्वारा बिना रक्तपात अंगरेज़ों ने अपने अधीन कर लिए थे। किन्तु जसवन्तराव होलकर ने शुरू ही में दूरदर्शिता के साथ अपनी सेना के तीन विश्वासघातक यूरोपियन अफसरों को मरवा कर उस सेना के अन्दर अंगरेज़ों के इन "गुप्त उपायों" का चल सकना असम्भव कर दिया था। सब से पहला काम होलकर के विरुद्ध जनरल लेक ने यह किया कि एक संना करनल डॉन के अधीन भेज कर अंगरेजों का टोक १६ मई सन् १८०४ को टोक रामपुरा का किला विजय "" अपने अधीन कर लिया। बहुत सम्भव है कि इस किले की सरल विजय में विश्वासघातक अमीर खाँ को मदद रही हो, क्योंकि बाद में यही टोंक की रियासत अंगरेज़ों ने अमीर खाँ और उसके वंशजों को प्रदान कर दी। बुन्देलखण्ड में अंगरेज़ों की अपमान जनक पराजय के बाद गवरनर जनरल की आज्ञानुसार जनरल लेक ने पाँच पलटन देशी सिपाहियों की, करीब तीन दुतरफा हमला हज़ार सवार और काफ़ी तोपख़ाना जनरल होलकर पर