पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७५६
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज अंगरेज़ ऊपर से मुझे बहका. कर होलकर के विरुद्ध मुझसे मदद लेना चाहते हैं और भीतर ही भीतर मेरे राज और मेरी प्रजा पर पूरी तरह अपना अधिकार जमा लेने की तरकीबे कर रहे हैं। इस सब के अतिरिक्त भरतपुर के पास पास गङ्गा और जमुना के बीच दोश्राब का जो इलाका पिछले युद्ध में अंगरेजों ने महाराजा सीधिया से छीन कर अपने शासन में कर लिया था, उस समस्त इलाके में केवल एक ही वर्ष के ब्रिटिश शासन के कारण इस समय त्राहि त्राहि मची हुई थी। गवरनर जनरल ने यह सारा इलाका जनरल लेक के अधीन कर दिया था और वहाँ का 'बन्दोबस्त' लेक दोभाव में कम्पनी को सौंप दिया था । लेक ने जिस तरह से भी के अत्याचार हो सकता था, दोश्राब की प्रजा और वहाँ के ज़मींदारों को सता सता कर उनसे धन वसूल करना शुरू किया। भूमि का लगान इतना बढ़ा दिया गया कि जिसे देख कर प्रान्त के बूढ़े से बूढ़े निवासी भी चकित रह गए । मुगल साम्राज्य के अन्तिम दुर्घल सम्राटों के निर्बल शासन में भी प्रजा से कभी इतना अधिक लगान न लिया गया था। इससे पूर्व के असभ्य श्राक्रमक भी देश के लोगों के साधारण निर्वाह के लिए जितना सामान छोड़ जाते थे, नए अंगरेजी बन्दोबस्त के बाद उनके पास उससे कहीं कम बच सकता था। इसके अतिरिक्त दोश्राव के अंगरेज़ अफसरों ने लेक की श्राक्षानुसार दोश्राव की भारतीय प्रजा पर और भी तरह तरह के