४६४ भारत में अगरेजी राज की सेना को जा पकड़ा और पहुँचते ही हमले को साक्षा दी । टीपू की सेना ने इस समय भी पूरी बीरता दिखलाई । कम्पनी की सेना को भारी शिकस्त खानी पड़ी। अनेक वीर मैदान में काम पाए ओर अनेक माल असबाब छोड़कर जान बचा कर पास पास के जंगल में जा छिपे । टीपू के जासूसों ने पाकर उसे खबर दी कि बम्बई की सेना युद्ध का इरादा छोड़कर जंगल के रास्ते पीछे लौट गई। टीपू अपनी विजयो सेना सहित श्रीरंगपट्टन की ओर मुड़ पाया। मालूम होता है पूनिया और कमरुहीन जैसे विश्वासघातकों ने टीपू के चारों ओर नमकहराम मुखबिर और सलाहकार पैदा कर रक्खे थे। टीपू के श्रीरंगपट्टन पहुँचते ही जनरल हेरिस की सेना नगर के सम्मुख प्रा पहुँची। सामने की ओर श्रीरंग- 1 को पट्टान का किला था और पीछे नगर । अंगरेज़ी र संमा ने किले और नगर के अन्दर प्राग बरसानी शुरू की। टीपू के कुछ सलाहकारों ने उसे यह राय दी कि आप नगर छोड़कर भाग जाइये या सुलह को बातचीत शुरू कीजिये । वीर टीपू ने उस स्थिति में दोनों बातों से इनकार कर दिया। उसने अन्त समय तक लड़ने का निश्चय कर लिया था। मालूम होता है, पूनिया और कमरदीन खां के विश्वासघात का उसे अभी तक पता न था। उसने फिर इन्हीं दोनों सेनापतियों के अधीन सेना नियुक्त करके किले से बाहर भेजी। मीर हुसमालो सां लिखता है
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