जसवन्तराव होलकर ७६३ में करने के उद्देश से सेना सहित दिल्ली की ओर बढ़ा। किन्तु इस बीच अंगरेजों ने दिल्ली की रक्षा का पूरा प्रबन्ध कर लिया था। करनल प्रॉक्टरलोनी दिल्ली की सेनाओं का सेनापति था। अभी तक अंगरेज़ों ने सम्राट के साथ प्रतिक्षाओं को पूरा न किया था और न सम्राट और सम्राट के कुल के खर्च का उचित प्रबन्ध किया था, फिर भी प्रॉक्टरलोनी ने झूठे वादों और श्राशाओं के सहारे सम्राट शाहआलम को अपनी ओर कर रखा था। परिणाम यह हुआ कि सम्राट ने भी अपना सारा प्रभाव मराठों के विरुद्ध अंगरेज़ों के पक्ष में लगा दिया और जसवन्तराव को दिल्ली में सफलता न मिल सकी। ऐसी स्थिति में जसवन्तराव को जब मालूम हुआ कि जनरल लेक मथुरा से मेरा पीछा कर रहा है, तो वह सहारनपुर में १५ अक्तूबर को दिल्ली छोड़ कर सहारनपुर को होलकर की ओर चल दिया। इसके दो दिन बाद लेक दिल्ली पहुँचा । सहारनपुर के इलाके में जसवन्तराव को सिख सरदार दोलचासिंह, नवाब बम्बू खां और बेगम समरू इत्यादि से सहायता की श्राशा थी। किन्तु अधिक चतुर अंगरेजों के सामने वहाँ पर भी उसकी आशा पूरी न हो सकी। भारत के अन्दर अपनी ससा के कायम करने में अंगरेजों को सिखों से सदा सहायता मिलती रही है। इससे विजय के पूर्व दौलतराव सींधिया के विरुद्ध भी सिखों ने अंगरेजों की मदद की थी। इस अवसर पर असफलता साधन
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