७६६ भारत में अंगरेजी राज जा रहा था। उसने अपनी सेना के दो हिस्से किए। पैदल सेना और तोपखाने को उसने आगे बढ़ा दिया और स्वयं अपने सवारों सहित पीछे रहा। ३१ अक्तूबर को जनरल लेक तीन रेजिमेण्ट गोरे सवारों की, तीन देशी सवारों की और बहुत सा तोपखाना लेकर होलकर और उसके सवारों के मुकाबले के लिए दिल्ली से निकला। उधर मेजर जनरल फ्रेज़र को उसने बहुत सी पैदल सेना, दो रेजिमेण्ट देशी सवारों की और तोपखाना देकर होलकर की पैदल सेना और तोपखाने का पीछा करने के लिए रवाना किया। लेक को पता चला कि होलकर अपने सवारीसहित इस समय . शामली में है। जसवन्तराव जितनी जल्दी हो कर का पीछा सके, भरतपुर पहुँचना चाहता था, और लेक उसे मार्ग में रोक कर उससे लड़ना चाहता था । जसवन्तराव की खबर पाते ही लेक शामली की ओर बढ़ा।३ नवम्बर को लेक शामली पहुँचा; किन्तु होलकर उससे पहले ही भरतपुर की ओर रवाना हो चुका था। लेक होलकर का पीछा करता रहा। १७ नवम्बर को लेक फर्रुखाबाद में होलकर की सेना के पास आ पहुँचा। किन्तु फिर भी उसे होलकर पर हमला करने का साहस न हो सका, और जसवन्तराव निर्विघ्न अपनी सवार सेना सहित भरतपुर राज के अन्दर डीग के किले में दाखिल हो गया। लेक की इस असफलता के विषय में गवरनर जनरल ने लेक को हिम्मत दिलाते हुए लिखा- "दुर्भाग्य की बात है कि होलकर पाप से बच कर निकल गया। हालव
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