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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३७४

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७७८
भारत में अंगरेज़ी राज

७७८ भारत में अंगरेजी राज "रणजीतसिंह को होलकर से तोड़ने के लिए हर तरह की कोशिश को जा रही है और की जायगी। x x x यदि रणजीतसिंह ने साथ छोड़ दिया तो फिर होलकर और उसके अनुयाइयों के लिए कोई पाशा न रहेगी।" और भागे चल कर जनरल लेक ने लिखा:- "रणजीतसिंह के साथ इस समय मेरा पत्र व्यवहार जारी है और मुझे आशा है कि इस पत्र व्यवहार से एक ऐसा समझौता कर लिया जायगा जो अंगरेज़ सरकार के लिए पूरा लाभदायक होगा और जिससे भविष्य मे फिर कभी रणजीतसिह और जसवन्तराव होलकर में मेल न हो पाएगा।" जनरल लेक को अपने "गुप्त उपायों" पर अभी तक बहुत विश्वास था। भरतपुर के बाहर अंगरेज़ी सेना की स्थिति इस समय वास्तव में बेहद नाजुक थी। नगर के भीतर की भारतीय सेना के हौसले बढ़े हुए थे। जनरल लेक और उसकी सेना की हिम्मते बिलकुल टूट चुकी थीं। उनके पास रसद की भी कमी थी। भरतपुर विजय होने की लंक को अब अणुमात्र भी अाशा न रही थी और न भरतपुर से लौट कर पीछे मुड़ने में ही अंगरेज़ों को अपनी सलामती नज़र आती थी। • "Every endeavour Is making, and will be made to detach Ranjit Singh, from Holkar Holkar and his followers would have httle hope if abandoned by Ranjit Singh "--General Lake to Governor-General + "A correspondence is now going on between me and Ranjit Singh, which I am in hopes .will lead to an accommodation sufficiently tavourable to the British Government and prevent any future union of interests between that claef and Jaswant Rao Holkar