पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३७७

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भरतपुर का माहासरा

भरतपुर का मोहासरा ७१ अमीर ख़ाँ ने धन और जागीर के लोभ में अपने मालिक जसवन्त- राव होलकर के सवारों को शत्रु के भालों और गोलियों के हवाले कर दिया। विजय जनरल स्मिथ की ओर रही। अफजलगढ़ से चल कर नमकहराम अमीर खाँ २० मार्च सन् १८०५ को फिर भरत- पुर में होलकर से श्रा मिला, और विजयी स्मिथ २३ मार्च को बाहर जनरल लेक से श्राकर मिल गया। जनरल लेक का एक बहुत बड़ा भय इस प्रकार दूर हो गया। फिर भी यदि दौलतराव सींधिया उस समय बाहर से आकर जनरल लेक की सेना पर हमला कर देता तो भी जनरल लेक को सेना भरतपुर के मैदान में दोनों अवसर ओर से शत्रुओं के बीच में पिस कर समाप्त हो गई होती। दौलतराव सोंधिया को इससे अच्छा अवसर न मिल सकता था। यदि वह अपनी शेष सेना सहित इस समय होलकर को मदद को पहुँच जाता, तो अपने समस्त खोए हुए राज और अधिकारों को फिर से प्राप्त कर सकता था। भारत के अन्दर मृत प्राय मराठा साम्राज्य को फिर से जीवत कर सकता था, और विदेशियों की साम्राज्य आकांक्षाओं को उस समय भी ख़ाक में मिला सकता था । जसवन्तराव होलकर और भरतपुर के राजा दोनों को दौलतराव सींधिया के पहुंचने की पूरी प्राशा थी। स्वयं दौलतराव इस बात को समझता था और भरतपुर पहुँचने के लिए उत्सुक था। किन्तु यह बात जानने योग्य है कि किन चतुर उपायों से अंगरेज़ों ने दौलतराव सींधिया को होलकर की मदद के लिए