पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/३७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७८२
भारत में अंगरेज़ी राज

७-२ भारत में अंगरेजी राज सींधि मौके पर पहुँचने से रोके रक्खा । इस बात को जानने के लिए हमें अब कुछ पीछे हट कर इस युद्ध के शुरू के दिनों की ओर दृष्टि डालनी होगी। दौलतराव और जसवन्तराव मे अंगरेजों ही के कारण शुरू से एक दूसरे पर अविश्वास चला पाता था। इस अविश्वास को और अधिक भड़का कर और अनिश्चितता उससे लाभ उठाकर अंगरेज़ स्वयं दौलतराव सींधिया से जसवन्तराव होलकर के विरुद्ध सहायता चाहते थे। इसी लिए जसवन्तराव के साथ युद्ध शुरू करने से पहले ही गवरनर जनरल ने दौलतराव से वादा कर लिया था कि विजय के बाद होलकर के गज का एक बहुत बड़ा भाग आपको दे दिया जायगा। शुरू में दौलतराव ने इस वादे पर एतबार करके अंगरेजों की मदद भी की, किन्तु शीघ्र ही दौलतराव को अंगरेजों के इन सब वादों की असलीयत का पता चल गया। अंगरेज़ों के उस समय तक के व्यवहार के विरुद्ध दौलतराव को अनेक शिकायतें थीं, जिनमें से कुछ का इससे पूर्व ज़िक्र किया जा चुका है। १८ अक्तूबर सन् १८०४ को दौलतराव सींधिया ने माक्विस वेल्सली के नाम एक अत्यन्त स्पष्ट और महत्वपूर्ण पत्र लिखा । उस पत्र का सार इस प्रकार है- अंगरेज़ों ने मेरी ओर मित्रता दर्शा कर मुझसे होलकर के विरुद्ध सहायता चाही, किन्तु मेरी सलाहों और प्रार्थ- 1 पत्र नाओं की ओर रेज़िडेण्ट वेब ने कुछ भी भ्यान नहीं दिया, यहाँ तक कि स्वयं मेरी ओर वेब का व्यवहार अत्यन्त साधि