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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४०

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४६८
भारत में अंगरेज़ी राज

४६८ भारत में अंगरेजी राज पहुँच कर फिर से अपने प्रादमियों को जमा कर सके, शत्रु के सिपाही दीवार के टूटे हुए हिस्से से श्रीरंगपट्टन के किले के अन्दर घुस पाए। जब दीवान मीर सादिक को पता चला कि सुलतान खुद सेना जमा करके किले के अन्दर गया है, उसने घोड़े मार पर चढ़ कर सुलतान का पीछा किया और जिस सादिक का रस दरवाजे से टीपू किले के अन्दर गया था, उसे मजबूती से बन्द करवा कर, ताकि टीपू किसी तरह बच कर न निकल सके, बाहर से सहायता पहुँचाने के बहाने एक दूसरे दरवाजे से खुद बाहर निकलना चाहा । इस दूसरे दरवाजे पर पहुँचते ही उसने वहाँ के पहरेदारों को श्राहा दी कि जब मैं बाहर चला जाऊँ तो तुम दरवाजे को मजबूती से बन्द कर लेना और फिर किसी के कहने पर भी न खोलना। किन्तु अभी वह इन पहरेदारों से बात कर ही रहा था कि टीपू के एक वीर सिपाही ने सामने से आकर ललकार कर कहा-'ऐ कम्बख्त मलऊन ! अपने खुदातर्स सुलतान को दुश्मनों के हवाले करके अब तू जान बचा कर भागना चाहता है ? ले यह तेरे गुनाह की सज़ा है !" यह कह कर उसने अपनी सलवार के एक वार से ममकहराम मीर सादिक़ के दो टुकड़े कर डाले । मीर सादिक की लोथ घोड़े से जमीन पर जा गिरी। किन्तु टीपू और उसके देश को अब इससे क्या लाम हो सकता था। टीपू ने जब अच्छी तरह देख लिया कि मेरे श्रादमियों ने मेरे साथ दगा की और किला शत्रु के हाथों में चला गया, तो उसने