पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४१

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टीपू सुल्तान

टीपू सुलताव एक बार उसी दरवाजे से फिर बाहर जाना चाहा, किन्तु एक मामूली किलेदार ने, जिसे मीर सादिक ने पहले से समझा रक्ता था, इस समय अपने स्वामी और नरेश टीपू सुलतान की श्राहा पर जिले का दरवाजा खोलने से इनकार कर दिया। अंगरेजी सेना दीवार के टूटे हुए हिस्से पर से किले के अन्दर प्रवेश कर चुकी थी। टोपू अब फिर लौट कर टीपू का बीरोचित अपने मट्री भर श्रादमियों सहित बढ़ते हुए शत्रु की ओर लपका । उसने अपनी शक्ति भर अपने इन रहे सहे सिपाहियों को जोश दिलाया। उसने चिल्ला कर कहा-"पाखोर वक्त तक किले की रक्षा करना हमारा फ़र्ज़ है"- "इन्सान को मौत सिर्फ एक मरतबा आ सकती है, फिर क्या परवा है कि जिन्दगी कब खत्म हो !"* यह कह कर उसने अपनी बन्दूक से शत्रु की ओर गोलियां चलाना शुरू किया। कई यूरोपियन अफ़सर उसकी गोलियों का शिकार होकर गिर पड़े। किन्तु शत्रु की संख्या बहुत अधिक थी। अन्त में एक गोलो टीपू की छाती में बाई ओर श्राकर लगी। टीपू जख्मी हो गया, फिर भी उसने बन्दुक हाथ से न छोड़ी और न वह पीछे मुड़ा। इस जख्मी हालत में भी वह बराबर अपनी बन्दुक से शत्रु पर गोलियाँ बरसाता रहा । थोड़ी देर बाद एक दूसरी गोली टीपू की छाती में दाहिनी ओर आकर लगी। टीपू का घोड़ा अब जल्मों से छलनी - - • “ History of Hyder Shah and Tippoo Sultan "-by Prince Gholam Mohammad