सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८४६
भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज बुन्देलखण्ड के राजाओं के विरुद्ध भी लॉर्ड मिण्टो को सेनाएँ भेजनी पड़ी और एक साधारण सा युद्ध बुन्देलखण्ड और र त्रिवानकुर में भी हुआ। किन्तु लॉर्ड मिण्टो के भवान त्रिवानकुर समय की सब से अधिक महत्वपूर्ण घटना ईरान और अफगानिस्तान की ओर उसकी नीति थी। मिण्टो की इस पर राष्ट्र नीति को बयान करने से पहले इससे पूर्व की मार्किस वेल्सली की पर राष्ट्र नीति को बयान करना आवश्यक है। मार्किस वेल्सली के समय में ज़मानशाह अफ़ग़ानिस्तान का बाद- शाह था,सिन्ध और पंजाब के सूबे अफगानिस्तान ___ के सामन्त थे, और जमानशाह के ब्रिटिश भारत राष्ट्र नीति पर हमला करने की कई बार खबर उड़ चुकी थी। इसके लिए माकिंस वेल्सली ने तीन मुख्य उपाय किए । एक, उसने ईरान के बादशाह बाबा खाँ के पास अपने विशेष दूत भेज कर बाबा खाँ को धन का लोभ दिया और उसे अपने सहधर्मी और पड़ोसी अफ़ग़ानिस्तान पर हमला करने के लिए उकसाया। दूसरे सिन्ध और पंजाब के नरेशों को जमानशाह के विरुद्ध भड़काया और तीसरे ईरान ही के ज़रिये अफ़ग़ानिस्तान में आपली फूट डलवाई और जमानशाह के विरुद्ध साज़िशें करवाई। - अक्तूबर सन् १७६८ को मार्किस वेल्सली ने बम्बई के गवरनर डनकम को लिखा- अफगानिस्तान के "मैं मापसे सहमत हूँ कि आपने बुशायर में रहने विरुद्ध साजिश के लिए जिस देशी एजएट को नियुक्त किया है, उससे