पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४८४

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेज़ी राज जाते हैं। जिस आदमी को रुपया दिया जाता है, वह लेने से इनकार करता है और कहता है कि मैं पहले अमुक व्यक्ति के साथ सौदा पका कर चुका हूँ, किन्तु उसकी एक नहीं सुनी जाती। यदि वह धन लेने से इनकार ही करता रहता है तो एक रुपया उसके मकान में फेंक दिया जाता है, उसका नाम रजिस्टर में लिख लिया जाता है, जो श्रादमी थैली लाया था उसकी गवाही करा ली जाती है और समझा जाता है कि ज़ान्ते की काररवाई हो गई । इस अन्याय द्वारा रेज़िडेण्ट को अधिकार है कि वह मेरे दरवाज़े से मेरा माल और मेरे कारीगरों को जबरदस्ती मुझसे छीन ले जाय और वह छीन ले जाता है। "यह अन्याय यहाँ पर ही खत्म नहीं होता । यदि मैं अपने रुपए की वापसी के लिए उस आदमी पर अदालत में दावा करता हूँ तो जज का फर्ज है कि मेरे हक में डिग्री देने से पहले रेजिडेण्ट से यह पता लगा ले कि कर्जदार को कम्पनी का तो कुछ रुपया नहीं देना है । यदि देना होता है तो पहले रेज़िडेण्ट के हक में डिग्री मिलती है और मुझे अपने रुपए से हाथ धोना पड़ता है।" • "The East India Company had their commercial residents established in the different parts of the silk districts, whose emoluments mainly depended on the quantity of silk they secured for the Company " The system pursued by both parties was thus -Advances of money before each bund or crop were made to two classes of persons-first, to the cultivators who reared the cocoons next, to the large class of winders who formed the mass of the population of the surrounding villages By the first the raw maternal was secured, by the last the labor for working it I will state a case of every day occurrence