सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८९४
भारत में अंगरेज़ी राज

६४ भारत में अंगरेजी राज ऊपर के उद्धरणों से जाहिर है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन काल में कम्पनी की भारतीय प्रजा के जान माल, उनकी मान मर्यादा या उनकी पवित्रतम भावनाओं' किसी का अणुमात्र भी मूल्य न था। निस्पन्देह संसार के किसी भी देश और किसी भी युग में प्रजा की वह भयङ्कर दुर्दशा न हुई होगी जो कम्पनी के शासन काल में भारतीय प्रजा की हुई। अब हम फिर सन् १८१३ के नए कानून की ओर आते हैं। इस कानून के पास होने से पहले भारत और सन् १८१३ की इङ्गलिस्तान के बीच व्यापार करने का अनन्य नई व्यापारिक नीति अधिकार ईस्ट इण्डिया कम्पनी को प्राप्त था। सन १८१३ के कानून में सब से पहली बात यह की गई कि यह अनन्य अधिकार कम्पनी से छीन लिया गया और भारत के साथ व्यापार करने का दरवाजा प्रत्येक अंगरेज़ व्यापारी और प्रत्येक अंगरेज़ व्यक्ति के लिए खोल दिया गया। इसका अर्थ यह था कि भारतीय प्रजा के ऊपर अत्याचारों के करने और उन्हें इस प्रकार लूटने का अधिकार अब श्राम तौर पर मब अंगरेजों को दे दिया गया। इसके अतिरिक्त सन् १८१३ में हो पहली बार यह तय हुश्रा कि भारत के उद्योग धन्धों को नष्ट किया जाय, इङ्गलिस्तान के anland trade have been obtained by a scene of the most tyrannical and oppressive conduct that was ever known in any age or country'"-Social Statics, by Herbert Spencer, 1st edition, p 367