पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/४९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
८९५
भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश

भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश ५ व्याख्यान उद्योग धन्धों को बढ़ाया जाय और इङ्गलिस्तान का बना हुश्रा माल जबरदस्ती भारतवासियों के सिर मढ़ा टीरने का जाय । जिस समय इस विषय पर बहस हो रही थी पार्लिमेण्ट के एक सदस्य मिस्टर टीरने ने पालिमेण्ट में व्याख्यान देते हुए स्पष्ट कहा- "आम असूल अब से यह होगा कि इङ्गलिस्तान अपने यहाँ का बना हुआ सब माल ज़बरदस्ती भारत में बेचे और उसके बदले में हिन्दोस्तान की बनी हुई एक भी चीज़ न ले । यह सच है कि हम रुई अपने यहाँ भाने देंगे, किन्तु जब हमें यह पता लग गया है कि हम मशीनों के जरिए हिन्दोस्तानियों की निस्बत सस्ता कपड़ा बुन सकते हैं तो हम उनसे यह कहेंगे कि 'तुम बुनने का काम छोड़ दो, हमें कच्चा माल दो और हम सुम्हारे लिए कपड़ा बुन देगे।' सम्भव है कि व्यापारियों और कारीगरों की रष्टि से यह बहुत ही स्वाभाविक सिद्धान्त हो । किन्तु इसमे फ्रिलासनी छाँटना या इस असूल के समर्थकों को खास तौर पर हिन्दोस्तान के हितचिन्तक गिनना ज़रा ज़्यादनी है । यदि हिन्दोस्तान के दोस्त कहने के बजाय हम अपने तई हिन्दोस्तान के दुशमन कहें तो समस्त हिन्दोस्तानी कारीगरी के नाश करने की इस सलाह से बढ़ कर दुशमनी की सलाह और हम हिन्दोस्तान को क्या दे सकते हैं ?" - - - -- --- ---- - • “ The general principle was to be that England was to force all her manufactures upon India, and not to take a single manufacture of India in returm It was true they would allow cotton to be brought, but then, having found out that they could weave, by means of machinery, cheaper than the people of India, they would say,-'Leave off weaving , supply us