भारतीय उद्योग धन्धों का सर्वनाश १०७ दूसरी बात इस नए तरीके में रवन्ना' थी। व्यापारी के किसी एक स्थान से चलते समय उसके सारे माल पर एक रवन्ना दिया जाता था। यदि कहीं पर व्यापारी अपना आधा माल घेच दे तो बचे हुए माल के लिए उस पास के चुङ्गीघर पर जाकर पिछला रवन्ना दिखला कर. माल का रखने के साथ मीलान करवाकर और पाठ आने सैकड़ा नया महसूल देकर आवश्यकतानुसार एक या अधिक नए रवन्ने ले लेने होते थे । यदि एक साल तक माल का कोई हिस्सा न बिका हो तो भी बारह महीने के बाद हर रवन्ना रद्दी हो जाता था । व्यापारी के लिए ज़रूरी था कि बारह महीने खत्म होने से पहले किसी पास के चुङ्गीधर पर जाकर पिछले रवन से अपने माल का मोलान करवा कर और पाठ आने सैकडा नया महसूल देकर नया रवन्ना हामिल कर ले, अन्यथा बारह महीने समाप्त होने के बाद उसे अपने समस्त माल पर नए सिरे सेचुङ्गी दनी पड़ती थी। तीसरी और सब मं बढ़ कर बात इस नए तरीके में तलाशी की 'चौकियाँ' थीं। ये चौकियाँ देश भर में भारतीय व्यापारियों . या जगह जगह बना दी गई थीं। चौकियों के छोटे .. औष्टि की दिकतें ' से छोटे मुलाज़िम को किसी भी माल को रोक लेने, उसे खुलवा कर देखने और रवन्ने मे मीलान करने आदि का अधिकार था। यदि माल रवन्ने के मुताबिक़ न होता था या व्यापारी के पास रखना न होता था तो इन चौकियों पर सारा माल कानूनन् जब्त कर लिया जा सकता था। इस पर तारीफ़ यह कि यदि कोई व्यापारी किसी ऐसे स्थान में माल ले कर चलता