पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
९२८
भारत में अंगरेज़ी राज

६२८ भारत में अंगरेजी राज ज़ाहिर है कि भारत में अंगरेज़ी उपनिवेश बनाने के लिए इन पहाड़ी इलाकों की ज़रूरत थी और ये इलाके युद्ध का जाहिरा नेपाल से बिना यद्धन मिल सकते थे। किन्तु कारण युद्ध का ज़ाहिरा कारण कुछ और बताया गया। सारन और गोरखपुर के जिलों में भारत और नेपाल की सरहदें मिलती थीं। सरहद की कुछ ज़मोन कम्पनी और नेपाल दरबार के बीच विवाद प्रस्त थी । वास्तव में उस समय तक भारत और नेपाल के बीच की सरहद बिलकुल साफ़ न थी और इस तरह के विवाद पहले भी कई बार हो चुके थे। ये विवाद दोनों राज्यों के संयुक्त कमीशनों के सुपुर्द कर दिए जाते थे और श्राम तौर पर उन कमीशनों का फैसला दोनों स्वीकार कर लेते थे। ___ इतना ही नहीं, वरन् मालम होता है कि अनेक बार ये झगड़े अंगरेज़ों के उकसाए हुए होते थे, और इस तरह के झगड़े खड़े करने में उन दिनों अंगरेजों को लाभ भी था । इतिहास लेखक हेनरी टी० प्रिन्सेप लिखता है कि अंगरेज़ सरकार अपनी सरहद के भारतीय ज़मींदारों का, जो अंगरेज़ सरकार को खिराज देते थे और अंगरेज़ों की ही प्रजा समझे जाते थे, विश्वास न करती थी, इसलिए अनेक बार अंगरेज़ जान बूझ कर उन ज़मींदारों के विरुद्ध नेपाल दरबार को बढ़ाते रहते थे। प्रिन्सेप यह भी लिखता है कि चूंकि अंगरेज़ सरकार ने इन ज़मींदारों के साथ स्थायो बन्दोबस्त कर रक्खा था, इसलिए ज़मीदारों की भूमि छिन जाने या कम हो जाने से अंगरेज़ों को कोई हानि न थी और न उन्हें इसकी परवा थी,