६५० भारत में अंगरेज़ी राज अधीन भेज कर बिना अधिक रक्तपात के हेस्टिंग्स ने कुमायूँ और गढ़वाल दोनों पर कब्जा कर लिया। निस्सन्देह अवध के ढाई करोड़ रुपयों ने इस काम में हेस्टिंग्स को खूब मदद दी। इस प्रकार नेपाली साम्राज्य के दो सबसे अधिक उर्वर प्रान्त केवल रिशवतों के बल उस साम्राज्य से तोड़ लिए गए । नेपाल दरबार के लिए यह एक ज़बरदस्त धक्का था। हम ऊपर लिख चुके हैं कि नैपालियों को ६०० मील की लम्बी सरहद की रक्षा करनी पड़ रही थी। कुल सेना लम्बी थैली उनके पास अंगरेजों की आधी से भी कहीं कम थी। इस पर भी जितनी बार और जहाँ जहाँ अंगरेजों और नैपा- लियों में खुला युद्ध हुआ, वीरता और युद्ध कौशल दोनों में नैपोली अंगरेज़ों से कहीं बढ़ कर साबित हुए, और हर संग्राम में अंगरेजों को जिल्लत के साथ हार खाकर पोछे हट जाना पड़ा। किन्तु इस समस्त वीरता और युद्ध कौशल के होते हुए भी, पाश्चात्य कूटनीति और अवध के धन के प्रताप से चन्द महीनों के अन्दर पूरब में मोराङ्ग का प्रान्त, बीच में कुमायूँ और गढ़वाल के प्रदेश और पश्चिम में हिन्दुर और बिलासपुर की सामन्त रियासते नैपाली साम्राज्य से तोड़ ली गई । देहरादून और नालागढ़ अंगरेज़ों ने विजय कर लिए। प्रिन्सेप ने माफ़ स्वीकार किया है कि नेपाल युद्ध में अंगरेज़ों को मुख्य कर अपनी "लम्बी थैली" के प्रताप से सफलता प्राप्त हुई। किन्तु इससे अधिक बढ़ना अंगरेजों के लिए असम्भव था। the length of the purse "-Prinsep, vol 1, P 136
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