पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५४७

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नैपाल युद्ध

नेपाल युद्ध ५१ नेपाली भी पाश्चात्य कूटनीति के सामने लाचार हो गए। दोनों पक्ष अब सुलह चाहते थे। जून सन् १८१५ में युद्ध साय बन्द हो गया। महाराजा नैपाल ने अपने कुल- पुरोहित गुरु गजराज मिश्र को अंगरेज़ पोलिटिकल एजण्ट मेजर ब्रेडशा के पास सुलह की बातचीत के लिए भेजा । मेजर ब्रेडशा ने गवरनर जनरल की आज्ञानुसार जो शर्ते पेश की उनको स्वीकार करना किसी भी आत्म सम्मानी नरेश के लिए सम्भव न था। संक्षेप में वे शत ये थीं- ___ जितने इलाके पर अंगरेजों ने इस समय तक कब्जा कर लिया है वह सब और उनके अलावा नैपाली सरहद के बराबर और बहुत सा इलाका अंगरेजों को दे दिया जाय, काठमण्डू में एक अंगरेज़ रेजिडेण्ट दल बल सहित रहा करे और बिना अंगरेजों की इजाजत के नेपाल दरबार न किसी यूरोपनिवासी को अपने यहाँ श्राने दे और न नौकर रखें, इत्यादि । महाराजा नैपाल ने गवरनर जनरल से इन शतों पर फिर विचार करने की प्रार्थना की, किन्तु व्यर्थ । इस अमरासह थापा बीच गवग्नर जनरल बराबर चारों ओर सरहद पर फौजें बढ़ाता रहा । सेनापति अमरसिंह ने मार्च सन् १८१५ में, जब कि लड़ाई जारी थी, अपने स्वामी महाराजा नैपाल के नाम एक पत्र लिखा जिससे अमरसिंह की नीतिज्ञता और वीरता दोनों का परिचय मिलता है । इस पत्र में अमरसिंह ने महाराजा नैपाल को सलाह दी कि- का पत्र