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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५४८

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भारत में अंगरेज़ी राज

६५२ भारत में अंगरेज़ी राज "अंगरेज़ों पर किसी तरह का विश्वास न किया जाय, नैपाल के सामन्तों के साथ साज़िशें करके ये लोग सदा नेपाल को निर्बल करने के प्रयन करते रहेंगे, काठमण्ड में अंगरेज़ रेज़िडेण्ट को स्थायी तौर पर रहने की इजाजत देना अत्यन्त खतरनाक है, इससे धीरे धीरे नेपाल के ऊपर 'सबसीडीयरो' सेना का लादा जाना और अन्त में नेपाल का पराधीन हो जाना अनिवार्य हो जायगा।" भरतपुर के राजा, टीपू सुलतान इत्यादि की मिसाले देकर अमरसिंह ने महाराजा नैपाल को सलाह दी कि-"नेपाल के अन्दर अंगरेजों को रिश्रायते देकर सुलह करने की अपेक्षा मरदाना वार लड़ते रहने में देश का अधिक हित है।" इत्यादि । ___इसमें सन्देह नहीं कि अमरसिंह ने उस समय के अंगरेजों के चरित्र को पूरी तरह समझ लिया था। एक ओर अंगरेज़ गवरनर जनरल की असम्भव माँगे, दूसरी ओर अमरसिंह जैसों की सलाह और नैपालियों का स्वाभाविक आत्म सम्मान, परिणाम यह हुआ कि सात महीने में ऊपर युद्ध बन्द रहने के बाद जनवरी सन् १८१६ में नए सिरे से अंगरेजों और नेपालियों के बीच युद्ध शुरू हो गया। किन्तु दोनों पक्ष थक चुके थे, इस बार मुशकिल से दो महीने युद्ध जारी रह सका। ___ अन्त में मार्च सन् १८१६ में दोनों पक्षों के बीच सन्धि हो गई, जिसमें नेपाल की स्वाधीनता कायम रही, किन्तु नेपालियों को भावी गजनैतिक आकांक्षाओं को एक ओर से चीनी साम्राज्य • Prinsep, vol 1, P 192