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भारत में अंगरेज़ी राज

६६० भारत में अंगरेजी राज वास्तव में कुछ बढ़ गई हो । गाज़ीउद्दीन को 'बादशाह' स्वीकार करने से पहले गवरनर जनरल ने उससे यह साफ़ शर्त कर ली थी कि कम्पनी के साथ आपके सम्बन्ध में इससे कोई अन्तर न पड़ने पाएगा। वास्तव में इस हास्योत्पादक घटना से उस समय के अवध के नवाबों की बेबसी का खासा परिचय मिलता है। ___ सम्राट अकबरशाह दूसरा उस समय दिल्ली के तख्त पर था। सम्राट की ओर लॉर्ड हेस्टिग्स के भावों का और अधिक पता हेस्टिंग्स के २२ जनवरी सन् १८१५ के रोजनामचे से लगता है। उस समय तक यह प्रथा चली आती थी कि प्रायः प्रत्येक गवरनर जनरल दिल्ली जाकर सम्राट से भेंट करता था। अंगरेज़ दिल्ली सम्राट को भारत का सम्राट और स्वयं कम्पनी सरकार का न्याय्य अधिराज स्वीकार करते थे। सम्राट के साथ पत्र व्यवहार करने, मिलने तथा बातचीत करने में समस्त अंगरेज अफसर प्राचीन मान मर्यादा का पालन करते थे। लिखा है कि सम्राट अकबरशाह ने हेस्टिंग्स को मिलने के लिए दिल्ली बुलाना चाहा । सम्राट का उद्देश सम्भवतः उन अनेक वादों की याद दिलाना था जो हेस्टिंग्स के पूर्वाधिकारियों ने अपने मतलब के लिए सम्राट शाहआलम से किए थे। किन्तु हेस्टिंग्स ने यह कह कर जाने से इनकार किया कि मुझे मुलाकात में ऐसे नियमों के पालन करने में एतराज़ है, जिनका अर्थ यह हो कि दिल्ली सम्राट कम्पनी सरकार का अधि- राज है। इस एतराज़ का कारण हेस्टिंग्स ने अपने रोज़नामचे में इस प्रकार दर्ज किया है। वह लिखता है-