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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५६०

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भारत में अंगरेज़ी राज

वास्त ४६४ भारत में अंगरेज़ी राज करना या जिसके उर्वर प्रान्तों को कम्पनी के साम्राज्य में मिलाना इस समय श्रावश्यक था, मराठों की ताकत • उहश थी। इसलिए सबसे पहले मराठी ही की ओर हेस्टिंग्स का ध्यान गया। नैपाल युद्ध से छुटकारा पाते ही उसने पेशवा, भोसले, सींधिया और होलकर की सरहदों के बराबर बराबर विशाल सेनाएँ जमा करनी शुरू कर दी। इस समस्त तैयारी के वास्तविक उद्देश को मराठा नरेशों से छिपाए रखने के लिए बहाना यह लिया गया कि यह सब केवल पिण्डारिया की लूट मार से अंगरेज़ी इलाके की रक्षा करने के लिए किया जा रहा है। किन्तु हेस्टिंग्स का वास्तविक उद्देश देर तक छिपा न रह सका। हेस्टिंग्स की तैयारी और तीसरे मराठा युद्ध की प्रगति को बयान करने से पहले इस स्थान पर पिण्डारियों पिण्डारियों का और उनके दमन के विषय में कुछ कहना श्रावश्यक है। ऊपर एक अन्याय में लिखा जा चुका है कि पिण्डारी दक्खिन की एक वीर, युद्ध प्रेमी जाति थी, जो शिवाजी के समय से लेकर १६ वीं शताब्दी के शुरू तक मराठा नरेशों की सेना का एक विशेष और महत्वपूर्ण अङ्ग बनी रही। उस समय के अनेक अंगरेज़ इतिहास लेखको ने पिण्डारियों .. को डाकू, लुटेरे, हत्यारे और निर्दयी लिखा है। पिण्डारियों की किन्तु इतिहास से पता चलता है कि पिण्डारियों विशेषता का पेशा डकैती न था और न वे स्वभाव से निर्दय थे। ऊपर लिखा जा चुका है कि ये लोग अधिकतर नर्बदा के दमन