६५ तीसरा मराठा युद्ध किनारे किनारे रहते थे, और ईमानदारी के साथ परिश्रम करके अपना और अपने बाल बच्चों का पेट भरते थे। शान्ति के समय ये लोग खेती बाड़ी करके टटू और बैलों पर माल लाद कर उसे बेच कर अपना गुजारा करते थे और युद्ध के समय मराठा नरेशों के यहाँ जाकर उनकी सेना में शामिल हो जाते थे। इतिहास लेखक मैलकम लिखता है- __ "मलहरराव होलकर और तुकाजी होलकर के समय में पिण्डारियों को xxx प्रति मनुष्य चार प्राने रोज़ दिए जाते थे और इसके अतिरिक्त वे अपने दृष्टुओं और बैलों पर नाज, चारा और लकड़ी लाद कर अपना गुजारा करते थे। इन चीजों के लिए पिण्डारी बाज़ार एक बड़ी मण्डी होता था।" उस समय के चार श्राने इस समय के करीब ढाई रुपए के बराबर हैं। यही अंगरेज़ लखक पिण्डारियों के स्वभाव के विषय में लिखता है- ___ “यह एक विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि x x x जो असंख्य कैदी पिण्डारियों के हाथों में प्राते थे, जिन कैदियों में कि पुरुष और स्त्री और हर मायु के लोग शामिल होते थे, उनसे यद्यपि पिण्डारी सेवा का काम लेते थे, उन्हें अपने सरदारों को दे देते थे और उनके रिश्तेदारों से रुपए लेकर उनमें छोड़ भी देते थे, फिर भी वे कभी किसी कैदी को गुलाम बना कर दूसरों के हाथ न बेचते थे, और न बजारों की तरह कभी गुलामों के क्रय-विक्रय का काम करते थे।" • Malcolm's Report on Central India, vol, p.436
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