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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६०३

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१००५
तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध १००५ "जब मैं दक्खिन गया तो मैं यह देख कर बड़ा प्रसन्न हुमा और चकित रह गया कि पूना का शहर इतना खुशहाल है। हाल में जो बरबादी, लूट और अकाल वहाँ हो चुके थे उनके कारण उस समय को यह खुशहाली और भी पाश्चर्यजनक मालूस होती थी । सभी मुख्य मुख्य गलियों और बाजारों में इस तरह के लोग भरे हुए थे जिनकी पोशाक और जिनकी शकल से यह मालूम होता था कि जिसना आराम, जितना सुख, जितना व्यापार और जितनी दस्तकारियाँ उनके यहाँ हैं उससे अधिक हमारे (यूरोप के) किसी भी बड़े से बड़े व्यापारिक नगर में नहीं हैं। चारों ओर सर्वव्यापी खुशहाली और बहुतायत का हँसता हुआ दृश्य दिखाई देता था । जब मैंने रेज़िडेण्ट से इसका जिक्र किया तो उसने मुझे इत्तला दी कि जब से पेशवा पूना लौट कर पाया है उसने पूना को समृद्धि को बढ़ाने के उद्देश से पूना और उसके पास पास के प्रदेश में हर प्रकार के टैक्स माफ कर दिए हैं; और इसलिए ताकि पेशवा के प्रज्ञान में भी कोई राजकर्मचारी प्रजा के साथ जबरदस्ती न कर सके, उसने कोतवाल का पद तक उड़ा दिया है।" • "On a late excursion into the Deccan I was exceedingly pleased and surprised to observe the great appearance of prosperity which the city of Poonah exhibited, and which was the more remarkable after the scenes of desolation, plunder and famine, it had been so lately subjected to all the principal streets and bazars were crowded with people, whose dress and general appearance displayed symptoms of comfort and happiness, of business and industry, not to be exceeded in any of our own great commercial towns The whole, indeed, was a smiling scene of general welfare and abundance On noticing this to the Resident, he informed me that the Peshwa, since this return, with a view of promoting the prospenty of Poonah, had exempted