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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६०४

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१००६
भारत में अंगरेज़ी राज

१००६ भारत में अंगरेजी राज सींधिया से राजपूताना छीना जा चुका था, पेशवा की गद्दी . समाप्त हो चुकी थी, गायकवाड़ अरसे से भासला राज और अंगरेजों को अधीनता स्वीकार कर ही चुका था, अब केवल दो और मराठा गज बाकी थे, नागपुर का भोसल गज और इन्दौर का होलकर राज । नागपुर का गजा श्राम तौर पर बरार का गजा कहलाता था, किन्तु बगर का सूबा दूसरे मराठा युद्ध के बाद अंगरेजों ने मराठों से छीन कर निज़ाम को दे दिया था। नागपुर का नगर भोसले राज को गजधानी था। इसलिए इसके बाद से भोमले कुल के गजाओं को नागपुर के गजा कहना अधिक उचित है। दूसरे मराठा युद्ध के समय गघोजी भोसले नागपुर का राजा थो । युद्ध के बाद वही एलफ़िन्सटन, जो बाद में पूना का रेज़िडेण्ट नियुक्त हुआ, चार वर्ष नागपुर का रेजिडेण्ट रहा । एलफ़िन्सटन ने अगणित बार हो गघोजी भामल को यह समझाने का प्रयत्न किया कि श्रापका कम्पनी के साथ सबसीडोयरी सन्धि कर लेनी चाहिए, किन्तु गघोजी ने जीते जी कम्पनी के साथ इस प्रकार का सम्बन्ध स्वीकार न किया। नागपुर में एलफिन्सटन के कारनामे उसके नाम जनरल it and the surrounding country from every description of tax, and to prevent the possibility of exactiony unknown to himself. had even abolished the office of Cutwal." --R Richards, 23rd July, 1801, quoted by William Digby mhe Prosperous British India-A Revelation, page 450