पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६७१

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लॉर्ड ऐमहर्ट

लॉर्ड ऐमहर्ट १०६७. का वर्णन पहले किया जा चुका है। इसी असफलता के विषय में सन् १८१४ में मेटकॉफ़ ने लिखा था- भरतपुर का पतन "भरतपुर में चार बार के हमले और बजाज और बम्बई की संयुक्त सेनाओं की हद दरजे की कोशिशें भी सफल न हो सकीxxx।" भरतपुर की हार अंगरेज़ा के दिल में काँटे की तरह खटक रही थी। मेटकॉफ़ ने दुख के साथ लिखा है कि.--"हमारी सैनिक कीर्ति का अधिकांश भाग भरतपुर में ही दफ़न हो गया।" खास कर दोश्राब और उत्तरी भारत में उस हार से अंगरेजो की कीर्ति को बहुत बड़ा धक्का पहुँचा । अंगरेज़ बराबर अपनी उस जिल्लत को धोने का मौका ढूंढ़ रहे थे । बरमा युद्ध की हारों ने और भी आवश्यक कर दिया था कि अंगरेज़ कहीं न कहीं कुछ करके दिखला दें। सन् १८२५ में भरतपुर के महाराजा की मृत्यु हुई । दो चचेरे भाइयों में गद्दी के लिए झगड़ा हुश्रा । लॉर्ड ऐमहर्ट को मौका मिला। उनमें से एक उम्मेदवार राजा बलवन्तसिंह का पक्ष लेकर कम्पनी का कमाण्डर-इन-चीफ़ जनरल कॉटन पच्चीस हज़ार सेना और बहुत सी तो साथ लिए १० दिसम्बर सन् १८२५ को भरत- पुर के किले के सामने जा पहुँचा। जिस भरतपुर की दीवारों ने बीस वर्ष पहले लॉर्ड लेक और उसकी विशाल सेना के दाँत खट्ट कर दिए थे, वह भरतपुर एक दिल और एक मत था, किन्तु श्राज भरतपुर का दरबार फूट का घर बना हुआ था । राजा बलवन्तसिंह