पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६८५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०८१
लॉर्ड विलियम बेण्टिक

लॉर्ड विलियम बेण्टिक ११ थी, या अंगरेज़ अफ़सर देवम्मा जी को अपनी साजिश का एक साधन बना रहे थे। यह भी मालूम नहीं कि असहाय राजा के अत्याचारों के अनेक झूठे किस्सं देवम्मा जी के गढ़े हुए थे या अंगरेजों के । जो हो, अंगरेजों ने कुर्ग के शासन में दखल देने का मौका निकाल लिया । जाहिर है कि वे कुर्ग की स्वाधीनता को नष्ट करने का केवल बहाना ढूंढ़ रहे थे। युद्ध का एलान कर दिया गया। एक सेना अंगरेज अफ़सरों . के अधीन कुर्ग को विजय करने के लिए भेजी राजा की ____गई । राजा इस युद्ध के लिए बिलकुल तैयार न असमअसता था और अन्त समय तक असमञ्जस में रहा। पादरी डॉक्टर मोगलिङ्ग अपने कुर्ग के इतिहास में लिखता है- “राजा ने, कुछ इस प्राशा में कि अभी सम्भव है फिर से सुलह हो जाय, और कुछ इस डर से कि यदि मामला हद को पहुँचा तो सम्भव है मुझे अपना सब कुछ खो देना पड़े, चारों ओर यह भाज्ञाएँ जारी कर दी कि कोई कुर्गनिवासी कम्पनी की मेनाओं को न रोके और न उनका मुकाबला करे । अंगरेज़ी सेना की कई डिवीज़नें इस समय कुर्ग में प्रवेश कर रही थीं। उन सब की सफलता का, बल्कि उनकी जान बचने तक का अधिकतर श्रेय राजा की इस असमञ्जसता को मिलना चाहिए, न कि अंगरेज सेनापतियों के युद्ध कौशल या उनकी योग्यता को।"* • “The Raja, incited partly by the hope that a reconciliation was yet possible, partly by the fear, that he might lose all, if matters went to extremities, sent orders prohibiting the Coorgs from encountering the troops of the Company To this vacillation of the Raja, the several divisions of