११०८ . भारत में अंगरेजी राज प्रान्तों में कम्पनी के शासन में किसानों को अवस्था दिन प्रति दिन कितनी खराब होती जा रही थी। "जो बयान इस प्रकार संक्षेप मे उपर दिया गया है, उससे कुछ दरजे तक मालूम हो जायगा कि बङ्गाल में, जिसकी आबादी चार करोड़ है, किसानों की हालत कितनी करुणाजनक है । मद्रास में, जिसकी आबादी सवा दो करोड़ है, किसानों की हालत और भी ज्यादा खराब है, और बम्बई में जिसकी प्राबादी एक करोष है, किसानों को स्थिति कितनी बुरी है। केवल किसानों का ही नाश नहीं हुआ है, बल्कि धीरे धीरे समस्त कौम का नाश हो रहा है। देश के भद्र लोगों (अर्थात् पुराने खान्दान वालों ) की श्रेणी प्रायः हर जगह लोप हो चुकी है। xxx नैतिक पतन भी इस शारीरिक पतन का स्वाभाविक परिणाम है । जो लोग इस स्थिति के लिए ज़िम्मेवार है वे इस भन्ने हो 'सन्तोषजनक' सममें, किन्तु भारत के लिए यह बरबादी और सर्वनाश है; घ के लिए इसमें खतरा और शिल्पात । “पाँचवीं कसौटी-कानून और न्याय । "xxx बड़े बड़े और महगे कानून । "xxx रेगुलेशन प्रान्तों में कानून कहलाने योग्य कोई चीज़ है ही नहीं, x x x अदालतों की काररवाई पेचीदा कर दी गई है, और खर्च बढ़ा कर असम कर दिया गया है । जिन्हें प्रदालतें कहा जाता है उनमें प्रवेश करने के लिए केवल इतना ही जरूरी नहीं है कि मनुष्य को कोई दावा करना हो, बल्कि (वकीलों को नहीं ) सरकार को देने के लिए उसके पास धन भी होना चाहिये । कम्पनी की उस समस्त भारतीय प्रजा के खिए, जो न्याय दूदने के लिए सरकार को टैक्स नहीं दे सकती, अदालतों के दरवाजे
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७१२
दिखावट