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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७१४

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भारत में अंगरेज़ी राज

१९१० भारत में अंगरेजी राज [प्राचीन भारतीय शिक्षा के सर्वनाश का वर्णन अगले अध्याय में किया जायगा।] "पाठवीं कसौटी-सरकारी नौकरियों । "x x x धीरे धीरे योग्य भारतवासियों को निकाल कर हर एक ऐसी नौकरी, जिसमें तनखाह अधिक हो, जिसमें कुछ जिम्मेवारी हो और जिसकी कुछ कद्र हो, अंगरेज़ों को दे दी गई है। इससे शासन का खर्च बेहद बढ़ गया है। यहाँ तक कि यही हमारी स्थायी नीति हो गई । सन् १८३३ के कानून का भी परिणाम यही हुमा कि x x x जो नौकरियों पहले भारत- वासियों के लिए थीं वे अब यूरोपियनों को दे दी गई। " x x x भारतवासी चाहे किसने भी शिक्षित,योग्य और उपयुक्त क्यों न हों, उन्हें तमाम ऊँची और अधिक तनखाह की नौकरियों से अलग रक्खा जाता है । xxx १५ करोड़ की आबादी में से तीन या चार हजार को छोटी छोटी नौकरियो मिल जाती हैं जिनकी औसत तनखाह करीब ३० पाउण्ड सालाना है। किन्तु शासन के कार्य में, विश्वास और जिम्मेवारी के कार्य में, कोई वास्तविक हिस्सा भारतवासियों को नहीं दिया जाता। [इसके बाद यह दिखाया गया है कि जो व्यवहार अंगरेज़ यहाँ पर हिन्दोस्तानियों के साथ कर रहे थे उससे अच्छा व्यवहार के अफरीका में वहाँ की हब्शी जातियों के साथ कर रहे थे। "किन्तु भारत में एक ऐसी कौम, जो उस समय सुसभ्य जीवन के समस्त धन्धों में कुशल थी, जब कि हम अभी जगलों में घूमा करते थे, अफ्रीका की क्रांती क्रोम से भी ज्यादा प्रभागी है और उनकी कौम की कौम