अवध और फरजाबाद ५०१ पर अवहार में और सन्त्रि में साफ विरोध दिखाई देता है । उस विरोध को वह स्पष्ट किन्तु अत्यन्त विनीत शब्दों में दर्शाता है। उन शब्दों से दूसरे की घोर अनादर के स्थान पर पहले पप ही के गिड़गिड़ाने की कहीं अधिक भाती है। इस पर दूसरा पर कहता है कि यह मेरी न्यायप्रियता और ईमानदारी पर शक करना है। पहला पर जब दूसरे पक्ष की इच्छा पूरी करने से इनकार करता है तो उसे दबा देने का इरादा किया जाता है, और इस दण्ड के लिए यदि पहले कोई दोष उस पर कान भी दिखाया जा सकता था तो अब यह शक करना एक ऐसा अपराध उससे हो गया जो शायद किसी भी सज़ा से नहीं कर सकता । जाहिर है कि इस ढंग से कभी भी और किसी भी सन्धि को तोड़ने के लिए बहाना निकाला जा सकता है । जिस पर को हानि सहनी पड़ती है, यदि वह बिना एतराज़ किए सर मुका दे तो कहा जाता है कि उसकी रजामन्दी है, और यदि वह शिकायत करे तो उस पर यह इलज़ाम लगाया जाता है कि तुम सबल पर की न्यायप्रियता और ईमानदारी पर शक जाहिर करते हो, और यह एक इतना जबरदस्त अपराध गिना जाता है कि इसके बाद ऐसे निकम्मे मनुष्य की भोर सबल पक्ष की कोई जिम्मेदारी रह ही नहीं जाती।"* . "A party to a treaty fulfils all its conditions with a punctuality, which in his place was altogether unexampled, agross intringement of that treaty, or at least, what appears to him a gross intringement, is about to be committed on the other side, he points out clearly, but in the most humble language, savouring of abjectness much more than disrespect, the an- consustancy which appears to hum to exist between the treaty and the conduct, this is represented by the other party as an impeachment of their jhonor and justice , and fno guilt eusted before to forma groundtor punishing the party who declines compliance with their will,a ult show
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