५०२ भारत में अपरेजी राज इसके बाद २२ जनवरी सन् १८०१ को लॉर्ड वेल्सली ने नवाब सादतअली को एक दूसरा पत्र लिखा कि- मशव के साथ या तो कल सालाना पेनशन लेकर सल्तनत खुजी जबरदस्ती ' से अलग हो जानो और या जो दो नई अंगरेज़ी पलटने अवध भेजी जा चुकी हैं उनके बदले में अपना प्राधा राज कम्पनी के हवाले कर दो।" इस दूसरे मजमून को सन्धि का एक मसौदा तक तैयार करके गवरनर जनरल ने पहले से रेजिडेण्ट के पास भेज दिया। नवाब ने बार बार एतराज़ किया, किन्तु वेल्सली ने २८ अप्रैल सन् १८०१ को रेजिडेण्ट को लिख दिया कि यदि नवाब रजामन्दी से अपना प्राधा राज हवाले न कर दे तो "सेना द्वारा उस पर कब्जा कर लिया जाय ।" इन पत्रों में वेल्सली ने यह भी स्पष्ट लिख दिया कि मेरी प्रान्तरिक इच्छा यह है कि-"नवाब की सैनिक शक्ति को खत्म कर दिया जाय" और "अवध की सारी सल्तनत पर दीवानो और फौजदारी शासन का अनन्य अधिकार कम्पनी के हाथों में ले लिया जाय । अंगरेज कम्पनी के अपर अवध के नवाबों के बेशुमार अहसान contracted which hardly any punishment can explate This it is evident, as a course by which no intrangement of a treaty can ever be destitute of a Justification It the party injured submits without a word, hus consents alloged If he complains he is treated as impeaching the honor and justice of bus superior, a crime of so prodigious a magnitude, as to set the superior above all obligation to such aworthless connection -History of British Indra, iy James Mall, vol vi, P 191
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