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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/९५

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भारत में अंगरेज़ी राज

५०० भारत में अंगरेजी राज इतिहास लेखक टॉरेन्स लिखता है- "करमण्डल तट पर अंगरेजों के सब से पहले मददगारों में तोर का राजा था।" __ प्रसिद्ध भारतीय विद्वान महादेव गोविन्द रानाडे ने अपनी पुस्तक में लिखा है- "करनाटक की समस्त जवाइयों में तार की सेना ने फ्रांसीसियों के विरुद्ध अंगरेजों के पक्ष में बड़े महत्व का भाग लिया।"+ ____टॉरेन्स लिखता है कि सन् १७४२ में तोर का राजा साहूजी किसी आपसी झगड़े के कारण गद्दी से उतार दिया गया और राजा प्रतापसिंह उसकी जगह बैठा । अंगरेजों ने राजा प्रतापसिंह को राजा स्वीकार कर लिया। सात साल से ऊपर तक अंगरेजों और प्रतापसिंह में मित्रता रहो, यहाँ तक कि इस बीच प्रतापसिंह ने फ्रांसीसियों के विरुद्ध अंगरेजों को मदद दी। - इसके बाद अंगरेजों ने बिना किसी वजह के प्रतापसिंह के . विरुद्ध पिछले राजा साहूजी के साथ गुप्त पत्र सह के व्यवहार शुरू किया। दोनों में सौदा हो गया। साथ दग़ा अंगरेजों ने प्रतापसिंह को गद्दी से उतार कर साहूजी को फिर से गही पर बैठा देने का वादा किया, और इसके बदले में साहूजी ने अंगरेजों का सारा खर्च और उसके अलावा राजा प्रता • Emparen Asraett-by Torrens + The Rise of the Marhatta Power -by Ranade p 250