तओर राजका अन्त ५०६ देवीकोट का किला और उसके पास पास की कुछ जागीर कम्पनी को देने का वादा किया। प्रतापसिंह कम्पनी का मित्र था । टॉरेन्स लिखता है कि प्रताप सिंह के खिलाफ कोई बहाना अंगरेजों के पास न था फिर भी थोड़े से धन और जागीर के लालच में प्रतापसिंह को गद्दी से उतारने के लिए कम्पनी को सेना भेज दी गई। इस सेना को प्रतापसिंह से हार खाकर लौट पाना पड़ा। फिर एक दूसरो सेना मेजो गई। इस दूसरी सेना ने साहूजी का भी साथ छोड़कर सबसे पहले देवीकोट के किले को घेरा और उस पर कब्जा कर लिया। किन्तु प्रतापसिंह का बल बढ़ा हुआ था । देवीकोट पर कब्ज़ा करते ही अंगरेज़ों ने प्रतापसिंह के साथ सुलह साहू जी के साथ की बातचीत शुरू की। सुलह हो गई । अंगरेजों " ने साहूजी का पक्ष छोड़ दिया और वादा किया कि हम अब कभी राजा प्रतापसिंह का विरोध न करेंगे। प्रतापसिंह ने इसके बदले में देवीकोट और उसके पास के कुछ इलाके पर बतौर जागीर कम्पनी का कब्ज़ा रहने दिया। जिस साहूजी का पक्ष लेकर अंगरेज़ों ने यह लड़ाई छेड़ी थी उसे अब उन्होंने स्वयम् कैद कर लिया और राजा प्रतापसिंह के खर्च पर उसे अपने यहाँ नजरबन्द रखने का वादा किया । टॉरेन्स लिखता है कि "हिन्दोस्तान की विजय का इस तरह प्रारम्भ हुआ।" विश्वार घात • "This was the begining of the conquest of Hindostan "-Empurem Ana, by Torrena, pp 20, 21
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