५१० भारत में अंगरेजी राज प्रतापसिंह से अब फिर अंगरेजों की मित्रता कायम हो गई। किन्तु तखोर का राज करनाटक से मिला हुमा वार पर था और अपने घन वैभव के लिए दूर दूर तक मशहूर था। करनाटक और अवध के नवाब कई पीढ़ियों तक अंगरेज़ों के लिए कामधेनु का काम करते रहे। इन दोनों नवाबों से धन चूसने के लिए आवश्यक था कि अंगरेज उनके पास के इलाकों को लूटने में उन्हें मदद दें। इसी लिए रुहेलखण्ड, फर्रुखाबाद इत्यादि के लूटने में कम्पनी ने अवध के नवाबों को समय समय पर मदद दी। इसी नीति के अनुसार सन् १७६२ में अंगरेज़ों ने करनाटक के नवाब मोहम्मदअली को तओर के राजा पर हमला करने में सहायता दी। हमले के बाद अंगरेज़ हो मध्यस्थ बने । तय हुआ कि भविष्य में तोर करनाटक की एक सामन्त रियासत समझी जावे, तओर के राजा कग्नाटक के नवाब को चार लाख रुपये सालाना खिराज दिया करें और अंगरेज़ कम्पनी इस बात के लिए ज़ामिन रहे के भविष्य में करनाटक का नवाब कभी तोर पर हमला न करेगा। प्रतापसिंह के बाद उसका बेटा तुलजाजी तोर का राजा हुआ। सन् १७७१ में तुलजाजी के समय में सोर पर फिर . करमाटक के नवाब ने फिर तोर पर चढ़ाई हमखा और लूट की और मद्रास के गवरनर ने सन् १७६२ के वादों को तोड़कर कम्पनी की सेना नवाब की मदद के लिए भेजी। राजा तुलजाजी ने एक बहुत बड़ी रकम अंगरेजों और करनाटक
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