इसलाम और भारत चीनी यात्री फाहियान के समय यानी पाँचवीं सदी में उत्तर पच्छिमी भारत के अन्दर काबुल से मथुरा तक बौद्धमत की हीनयान सम्प्रदाय का प्रचार अभी बाकी था, किन्तु शेष भारत में बौद्धधर्म मिटता जा रहा था । दो सौ साल बाद जब प्रसिद्ध चीनी यात्री नसाँग भारत पहुँचा तो उसने देखा कि उत्तर में हीनयान की जगह महायान ने ले ली थी। नत्साँग के बयान से मालूम होता है कि खासकर शिव की पूजा उस समय समस्त भारत में ज़ोरों के साथ फैलती जा रही थी ! अयोध्या के पास उसे इस तरह के मनुष्य मिले जो हर साल दुर्गा की मूर्ति के सामने मनुष्य की बलि चढाया करते थे । बंगाल के शैत्र राजा सशङ्क ने अनेक बौद्ध मन्दिरों को तोड़ कर उनमें बुद्ध की मूर्तियों की जगह शिव की मूर्ति कायम करना और बौद्ध धर्म के मानने बालों को तकली दे देकर अपने राज से निकालना शुरू कर दिया था । अन्य स्थानो पर नर मुण्डों की मालाएँ पहिने कापालिकों से यूनत्स्याँग की भेट हुई, इत्यादि। झूनत्साँग लिखता है कि अफगानिस्तान, ईरान और मध्य एशिया वक उस समय बौद्ध मत के माननेवाले और शैव मत के मामने वाले दोनों पाए जाते थे। इसके बाद के अरब यात्रियों, मोहम्मद इन्न इसहाक अन्नदीम, अलशहरस्तानी इत्यादि की पुस्तकों से भी इन्ही बातों का समर्थन होता है और पता चलता है कि मुसलमानों के आने के समय तक भारत से बौद्धमत करीब करीब लोप हो चुका था और शैवमन इत्यादि ने उसकी जगह ले ली थी। अल्बेरूनी लिखता है कि शैव और वैष्णव सम्प्रदायों के अलावा, शक्ति, सूर्य, चन्द्र, ब्रह्मा, इन्द्र, अग्नि, स्कन्ध, गणेश अम और कुबेर की मूर्तियों की पूजा भी भारत में शुरू हो गई थी और इन
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