पुस्तक प्रवेश पर युद्ध के विचारों की छाप साफ दिखाई देती है । अबुल अला आत्मा के श्रावागमन में विश्वास करता था, कहा निरामिपभोजी था, यहाँ तक कि दूध और शहद या चमड़े के उपयोग को भी पाप मानता था, प्राणिमात्र के साथ दया का उपदेश देता था, आहार और वस्त्रों में अत्यन्त परहेज़गार था और ब्रह्मचर्य को प्रारमा की उन्नति के लिए आवश्यक बताता था. मसजिद, नमाज़, रोजे और दिखावटी मज़हब का वह बड़ा विरोधी था । अपने एक पट में वह लिखता है-~- "ला इलाह इल्लल्लाह ! सच है, किन्तु जो मनुष्य कि अंधेरे में भी उस स्वर्ग को खोजता है, जो स्वर्ग मेरे अन्दर और तुम्हारे अन्दर मौजूद है, उसकी अपनी आत्मा के सिवा कोई दूसरा रसूल भी नहीं है।" अबुलनला संसार को माया मानता था । उमरख्खय्याम के स्वतन्त्र विचार प्रसिद्ध हैं । रतजगे करना, लम्बे लम्बे उपवास रखना, और कई तरह के नियम और तप सूफ्रियों ने मोहम्मद साहब की ज़िन्दगी से सीखे, किन्तु मूतियों के सिद्धान्तों पर ईसाई मन, प्राचीन ईरान के जरथुस्त्री मत और भारतीय हिन्दू और बौद्धमतों इन सब की छाप भी माफ दिखाई देती थी। मोहम्मद साहब ने संसार से पृथक रहने को मना किया था, किन्तु उनके अनुयाइयों में श्रारम्भ से ही इस तरह के लोग पैदा हो गए थे जिनका सिद्धान्त संसार से भागना ( अलफ़िरारो मिनदुनिया ) था। कट्टर मौलवियों और इन आज़ाद खयाल मूफ़ियों में बराबर झगड़ा चला आता था, फिर भी सैकड़ों साल तक हजारों और • Baerlen. Adul-Ala, the Syruar.
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