पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/११७

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जिज्ञासु अरब

जिज्ञासु अरब ८ लाखों मनुष्य चारों ओर से आ अाकर इन सूफ़ियों की खानकाहों में जमा होने थे और इसमे कोई सन्देह नहीं कि उस जमाने के मुसलमानों के जीवन और विचारों पर इनका बहुत गहरा प्रभाव था। महात्मा मनपूर का नाम संसार भर में प्रसिद्ध है । मनमूर ने भारत की भी यात्रा की थी। उसका मुख्य सिद्धान्त और वाक्य "अनल हक" था. जिसका ठीक वही अर्थ है जो 'अहं ब्रह्म का है। अपने आजाद ख़यालों के सबब से ही मनसूर को कैद किया गया और सन् १२२ ईसवी में यातनाएँ दे देकर मूली पर चढा दिया गया । कबीर, दादू, नानक और अन्य भारतीय महात्माओं के वचनों में मनसूर के वाक्य के वाक्य इधर से उधर नक भरे हुए हैं । मनसूर मवको खुदा मानता था और हर तरह की दुई को धोखा बतलाता था । कुदरती तौर पर इस अद्वैतवाद ने उस समय के असंख्य मुसलमानों में सब मजहबों की एकना और एक दूसरे की ओर उदारता के विचार भी पैदा किए । सूफ़ियों के साहित्य में योगाभ्यास के मुकामात, समाधि, सत्सङ्ग की महिमा, गुरु के महत्व, प्राणायाम इत्यादि का खूब ज़िक्र आता है और भक्ति के उन्माद में गाने, बजाने और नाचने की तारीफ़ की गई है । शेख बदरुद्दीन के विषय में, जो तेरहवीं सदी में भारत में आकर रहने लगा था, लिखा है कि जब वह इतना बूढ़ा हो गया था कि हिल ढुल न सकता था तब भी हरि कीर्तन की आवाज़ पर वह तुरन्त अपने बिस्तरे से कूद कर जयान मनुष्य की तरह नाचने लगता था । जब उससे पूछा जाना था कि इस निर्बल अवस्था में शेख कैसे नाच सकता है तो वह जवाब देता था, "शेख कहाँ है ? इश्क नाच रहा है।"

  • Blochman and Jarretc dyeen-t-kart, vol, if, p. 368