१२२ पुस्तक प्रवेश सन्तनामियों के बारह हुकुम सत्तनामी सम्प्रदाय का संस्थापक बीरभान दादू का समकालीन था। सत्तनामी अपने को साध भी कहते हैं । बीरभान ने केवल एक ईश्वर का उपदेश दिश, जिसका नाम उसने सत्तनाम रक्खा । सत्तनामी जात पात और छुआछूत के खिलाफ हैं । वे एक दूसरे के साथ खाते पीते हैं, और आपस ही में विवाह करते हैं । सत्तनामियों में तलाक की इजाजत है, वे मूर्तिपूजा के विरुद्ध हैं, ध्यान और सदाचार और मनुष्य मात्र को समता पर जोर देते है, मांस मदिरा का निषेध करते हैं। औरङ्गजेब के समय में ईश्वरदास नागर ने सम्राट से इस बात की शिकायत की थी कि सत्तनामी हिन्दू और मुसलमानों में किसी तरह का भेद नहीं करते। सत्तनामियों के 'श्रादि उपदेश' में 'बारह हुकुम' दिए हुए हैं, जिनका सार इस तरह है~ (१) केवल एक ही ईश्वर को मानो, मिट्टी, पत्थर, लकड़ी या किसी और बनी हुई चीज़ की पूजा न करो। (२) दोनता से रहो। (३) कभी झूठ मत बोलो, कभी किसी की निन्दा न करो, कभी चोरी न करो, दूसरे की चीज़ को कभी लालच की निगाह से न देखो। (४) कभी बुरी बात न सुनो, सिवाय मालिक के भजनों के और कुछ न मानो। (२) ईश्वर पर विश्वास करो! (६) जाल पाँत को मत मानो, किसी से वहस मत करो। (७) साफ कपड़े पहनो, किसी तरह का तिलक न लगाओ, और न माला पहनो।
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५४
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