मुग़लों का समय १५३ 'अबवाव' की वसूली के खिलाफ आज्ञाएँ फ़ीरोजशाह तुग़लक ( सन् १३७५) के समय से लबाट अकबर ( १९६०) के समय तक और उसके बाद करीब करीब हर मुग़ल सम्राट के समय में बराबर जारी होती रहती थी । मुग़ल सम्राट अपनी विशाल प्रजा के सुख दुख मे बेखबर भी न रहते थे । मुग़ल समय में 'वाले नवीपों', 'सवाने नवीमा', 'अरनबार नदीसों', 'खफिया नवीसों' इत्यादि का एक ज़बरदस्त मोहकमा था, जिसके जरिए साम्राज्य के कोने कोने की खबरे दिल्ली सम्राट के कानों तक पहुँचती रहती थीं। निस्सन्देह किसानों के सुख और उनकी समृद्धि का भारत के लिस्बे हुए इतिहास में किसी समय भी इतना अच्छा और व्यवस्थित प्रवन्ध न था जितना मुगल सम्राटों के समय से । यही वजह है कि उस समय के अनेक युरोपियन और अन्य यात्री भारतीय ग्रामों की खुशहाली की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा करते हैं और लिखते हैं कि संसार के अन्य किसी भी देश में उस समय किसानों की हालत इतनी अच्छी न थी। कोतवाल के कर्तव्य मुग़ल साम्राज्य के अन्दर हर शहर में अन्य कर्मचारियों के अलावा एक कोतवाल होता था, जिसके कामों में से एक काम यह भी होता था- "कोलवाल का यह कान है कि शराब का खिंचना बिलकुल बन्द कर दे। वह इसके लिए जिम्मेदार होता है कि शहर में कोई वेश्या न रहे: xx"
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+ g Bengalin 1756-57, byS CH:l, voll Manucca vol 1,0p +20, 421