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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१९२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश अकबर, जहाँगीर, शाहजहाँ और उनके अधिकांश उत्तराधिकारियों के समर में हिन्दू और मुसलमानों के साथ राज की ओर से एक समान व्यवहा किया जाता था, दोनों धर्मों को एक समान आदर की दृष्टि से देखा जात था और किसी के साथ किसी तरह का भी पक्षपात न किया जाता था अंगरेज़ एलची सर टॉमन्य रो ने सन् १६५६ ईसवी में सन्नाट जहाँगीर शासन काल में उस समय की हालत को देखते हुए लिखा था- "तैमूरलङ्ग की सन्तान अपने साथ मोहम्मद का मजहब भारत में लाई, किन्तु उन्होंने अपनी विजय के बल किसी को जबरदस्ती उस मज़हब में शामिल नहीं किया, और धर्म के मामले में सबको आज़ाद छोड़ दिया ।" औरङ्गजेब और उसके उत्तराधिकारियों के समय की (१६८८-१७२ बंगाल की हालत को बयान करते हुए एक दूसरा अंगरेज़ कमान अलेक्जेण्ड हैमिल्टन लिखता है- "यहाँ पर एक सौ से ऊपर मत मतान्तरों के लोग हैं, किन्तु वे अपने उसूलों या उपासना विधियों के विषय में कभी नहीं लडते झगडते । हर शख्स को आज़ादी है कि अपने तरीके के अनुसार ईश्वर की सेवा और पूजा करे । मज़हब के नाम पर दूसरे को किसी तरह की यातनाएं देने का यहाँ कोई नाम भी नहीं जानता xxx • "Tamerlain's offspring brought in the knowledge of Mohamn] but imposed it on none by the law of conquest, leaving consciences liberty"rd General Collection of the Best andaMost Interesting Voyagese -edited by John Pinkerton, London 1811, volvul p 46