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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१९४

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पुस्तक प्रवेश

12tha १६० पुस्तक प्रवेश निस्सन्देह धार्मिक उदारता ही भारतीय मुाल मानाष्य की आधार शिला थी। सन्नाट बाबर ने अपने बेटे हुमायूँ के नाम अपने अन्तिम आदेश में इस धार्मिक उदारता की नींव रखी ! हुमायूँ ने ईमानदारी के साथ उस पर अमल किया । सम्राट अकबर ने इस उदारता को उस अलौ- किक पराकाष्ठा तक पहुँचाया जो संसार के धार्मिक इतिहास में सदा के लिए एक सीमा चिन्ह रहेगी । जहाँगीर और शाहजहाँ ने अाश्चर्यजनक सफलता के साथ उसका पालन किया । उस समय का ईगई यूरोप हमें याद रखना चाहिए कि यह ठीक वह समय था जब कि यूरोप के अन्दर धर्म के नाम पर अत्याचार और ज़बरदस्तियाँ एक पाए दिन की मामूली घटना थी। धायरलैण्ड में उस समय न किसी रोमन कैथलिक को अपने पूर्वजों की जागीर मिल सकती थी, न कोई कैथलिक फौज का अफसर हो सकता था और न जजी की बेञ्च पर बैठ सकता था । फ्रान्स में ह्यूगेनाट सम्प्रदाय के एक एक आदमी को देश से समुद्र पार निर्वासित कर दिया गया था। स्वीडन मे सिवाय लूथर की सम्प्रदाय के और किसी ईसाई को जूरी का मेम्बर होने का अधिकार न था । स्पेन में प्रॉटेस्टेण्ट सम्प्रदाय के लोगों के मरने के समय किसी पादरी को उनकी अन्त्येष्टि क्रिया करने की इजाजत न थी । इतना ही नहीं, बल्कि यूरोप के एक एक देश मे उस समय 'एक्टस ऑफ यूनिफॉमिटी पास हो रहे थे जिनका अर्थ यह था कि सिवाय ईसाई मत की उम सम्प्रदाय विशेष के मानने वालों के, लिस सम्प्रदाय के कि वहाँ के शासक होते थे, किमी दूसरी सम्प्रदाय के लोग देश में सुख चैन से न रहने पाएँ । इन्हीं अत्याचारी कानूनों के फलरूप यूरोप के हर