पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२०४

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पुस्तक प्रवेश

___ .torren t .voPt. SAMACHARPAN aa पुस्तक प्रवेश हिन्दु राजा स्वाधीन बने रहते तो बङ्गला भाषा को राजाओं के दरबारों तक पहुंचने का मुशकिल से ही मौका मिल सकता था।" अङ्गाल के मुसलमान शासकों ने विद्वान परिडतों को नियुक्त करके रामायण और महाभारत का संस्कृत से बङ्गाला में अनुवाद कराया। बङ्गाल के मुसलमान शासक नसीरशाह ने चौदवी सदी के शुरू में महाभारत का बङ्गला में अनुवाद कराया । मैथिल कवि विद्यापति ने इस विषय में नसीर- शाह और सुलतान ग़यासुद्दीन की खूब प्रशंसा की है। राजा कस के उत्तराधिकारी ने इसलाम मत स्वीकार किया। कंप के दरबार में मुसलमानों का प्रभाव बहुत अधिक था । रामायण के अनुवादक कृत्तिवास को उस दरबार से पूरी सहायता मिलती थी । सम्राट हुसंनशाह ने मलधर वसु द्वारा भागवत का बङ्गला में अनुवाद कराया और इसके इनाम में मलधर वसु को गुनराज खाँ का खिताब दिया । हुसेनशाह के सेनापत्ति परङ्गल ख़ाँ ने महाभारत का एक दूसरा बङ्गला अनुवाद कवीन्द्र परमेश्वर से कराया। परङ्गल खाँ के बेटे चग्राम के शासक छोटे खाँ ने श्रीकरण नंदी से महाभारत के अश्वमेध पर्व का अनुवाद कराया। एक मुसलमान अलाउल ले मलिक मोहम्मद जायसी की हिन्दी पुस्तक पद्मावत का बङ्गाला में अनुवाद किया। अलाउल ने कुछ कारसी किताबों का भी बङ्गला में अनुवाद किया । दिनेशचन्द्र सेन लिखता है-- "इस तरह की मिसालें बेहद मिलती हैं जिनमें कि मुसलमान सम्राटों और सरदारों ने संस्कृत और फारसी के ग्रन्थों Dinesh ChandraSen History of Bengalh Language and Literature p 10