पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२४६

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश नीबों पर कायम कर लिया होता, यदि औरंगजेब के समय से पृथक पृथक धर्मों के मूठे भेदों ने फिर से देशवासियों के विचारों को पथभ्रष्ट न कर दिया होता, तो थाल इस देश की यह दशा होना असम्भव था। और किसी भी तरह का सुधार, सामाजिक या राजनैतिक, केवल रोग की जड़ों को छोड़ कर पत्तियों और डालियों के साथ काट छाँट करना है। इस तरह का कोई सुधार चिरस्थाई नहीं हो सकता। वास्तव में यदि सत्य है तो यही है और यदि भारत के या संसार के भावी कल्याण का कोई सच्चा मार्ग है तो यही है । सत्याग्रह और असहयोग इसके साथ साथ हमें प्रेम और सत्य के पवित्र सिद्धान्तों से न डिगते हुए राजनैतिक क्षेत्र मे 'सत्याग्रह' की अजेयता को अनुभव करना होगा और सत्याग्रह के अनन्त बल का अपने अन्दर संचार करना होगा। हमें यह समझना होगा कि हर अन्याय अन्यायी और अन्याय पीडित दोनों की आत्माओं के एक समान पतन का कारण होता है । कोई सच्चा प्रेमी किसी अन्याय को अपनी आँखों के सामने देखते हुए निश्चेष्ट नहीं बैठ सकता। घृणा और द्वेष की अपेक्षा प्रेम, सच्चा और क्रियात्मक प्रेम, एक कहीं अधिक प्रबल शक्ति है । जो मनुष्य किसी भी अन्याय को दूर करने के लिए सच्चे प्रेम के साथ अपने स्वार्थ, अपने सर्वस्व और अपने प्राणों की आहुति देने के लिए प्रस्तुत हो जाता है और हँसते हँसते कर्तव्य के नाम पर अनन्त कष्टों का सामना करने के लिए मैदान में निकल पड़ता है, उसकी शक्ति तोपों और बन्दूकों की शक्ति के मुकाबले में सर्वथा अजेय होती है । इस शक्ति का थोड़ा बहुत अनुभव हमें अपने हाल के राष्ट्रीय संग्रामों में मिल