भारत में अंगरेजी राज निष्फल प्रयत्न किये । अन्त में सन् १५४ ईसवी तक इनके जहाज अफरीका के नीचे से जावा होकर भारत पहुंचने लगे। डच जाति के लिखे हुए इतिहास से मालूम होता है कि भारत के नरेशों ने इनका वैसा ही अच्छा स्वागत किया, जैसा शुरू में पुर्तगालियों का किया था। पुर्तगालियों से इनकी लाग डाट थी। जिस तरह पुर्तगालियों ने अरब सौदागरों की रोजी छीनी थी, उसी तरह डच अद पुर्तगालियों की रोजी छीनने या कम से कम उसमें हिस्सा बटाने के लिये उत्सुक थे। इन लोगों ने भारतवासियों से पुर्तगालियों की खूब बुराइयाँ की। मुगल सम्राट ने इन्हें अब व्यापार के लिये कोठियाँ बनाने और अपनी रक्षा के लिये किले- बंदी करने की इजाज़त दे दी। सब से पहले पुलीकट और सद्रास नामक स्थानों पर इन्होंने अपनी कोठियाँ बनाई और किले खड़े किये। पुलीकट मौजूदा मद्रास के उत्तर में और सदास मद्रास के दक्खिन में है । बढ़ते बढ़ते सन् १६६३ ईसवी में उनकी एक कोठी पायरे में थी, जिसमें जो सड़ाकर उससे शराब तैयार की जाती थी। इसी तरह की उनकी कोठियाँ सूरत, अहमदाबाद और पटने में मौजूद थीं। धीरे धीरे बंगाल में भी उनका व्यापार बढ़ने लगा और सन् १६७५ में उन्होंने चुंचड़ा (चिनसुरा ) में एक कोठी कायम की। जव तक डच लोगों की निगाह केवल व्यापार पर रही, उन्होंने भारत से खब धन कमाया, किन्तु इसके बाद उनमें भारत के अंदर अपना राज कायम करने की इच्छा उत्पन्न हुई। इसी बीच अंगरेज़
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