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भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश

भारत में यूरोपियन जातियो का प्रवेश जाति भी भारत पहुंच गई और इस देश को अपने अधीन करने के लिये हर तरह के उपाय करने लगी। डच जाति को अधिक चतुर अंगरेजों के साथ टक्कर लेनी पड़ी। प्लासी की लड़ाई के दो साल बाद अगस्त सन् १७५४ ईसबी में डच लोगों के सात जंगी जहाज़ एका- एक चुंचड़ा के नीचे आ धमके। अंगरेजों का प्रभाव उस समय ख़ासा जम चुका था। अंगरेज़ों ने उन्हें चुंचड़ा तक पहुंचने भी न दिया और बंगाल के नवाब की सहायता से पूरी तरह शिकस्त देकर पीछे हटा दिया । उसी समय से डच लोगों का भारतीय व्यापार घटने लगा। अंत में सन् १८०५. ईसवी में अंगरेजों ने चुंचड़ा और मलाका के बदले में उन्हें सुमात्रा का टापू देकर डच जाति के अंतिम चिन्ह को इस देश से मिटा दिया। १६वीं सदी के शुरू में पुर्तगालियों की हिन्दोस्तानी तिजारत बढ़ने . से पुर्तगाल की राजधानी लिसबन का महत्व ___ भारत पर अंगरेज़ी और उसका वैभव युरोप में दिनों दिन बढ़ता जा की दृष्टि रहा था। इङ्गलिस्तान के रहने वालों को इससे ईर्षा होना स्वाभाविक था। इङ्गलिस्तान में उस समय ब्रिस्टल का बंदरगाह तिजारत की दृष्टि से सबसे आगे था। हर यूरोपियन कौम के लोग उन दिनों दूसरी क़ौम के माल से लदे जहाजों को पकड़ कर लूट लेना अपने लिये एक जायज़ व्यापार समझते थे। भारत और एशियाई समुद्रों में भी इन लोगों ने इस तरह की लूट का बाज़ार खब गरम कर रक्खा था। ब्रिस्टल के नाविक अनेक पुश्तों से बड़े मशहूर समुद्री डाकू गिने जाते थे। सबसे पहले