पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२७९

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भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश

भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश २७ से उतार कर खुद करनाटक का नवाब बनना चाहता था। साहूजी तोर का राजा था, और एक दूसरा हकदार प्रतापसिंह साहूजी को हटाकर तोर का राज लेना चाहता था। इनमें करनाटक का नवाव सूवेदार के अधीन था और तञ्जोर का राजा करनाटक के नवाब का बाजगुज़ार था। इन तीनों शाही घरानों की इस आपसी फूट से अंगरेज, फ्रांसीसी और मराठे तीनों फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे। दिल्ली के मुगल दरबार में इतना बल न रह गया था कि साम्नाज्य के एक कोने में इस तरह के झगड़ो को दवाकर सच्चे हकदारों के हक की हिफाज़त कर सके। इस सम्बन्ध में अनेक साज़िशे और लड़ाइयाँ हुई, जिनमें अंगरेजों ने लाज़िरजंग और अनवरुद्दीन का पक्ष लिया और फ्रांसीसियों ने मुजफ्फरजंग तथा चंदासाहब का, किन्तु इन झगड़ों का सूत्रपात तोर से हुआ। सबसे पहले चंदासाहब ने तञ्जोर के राजा साहूजी को गद्दी से उतार कर उस पर अपना कब्जा कर लिया। मराठों ने तोर पर चढ़ाई करके चंदासाहब को कैद कर लिया और प्रतापसिंह को वहाँ की गद्दी पर बैठा दिया। कहते हैं कि तओर की प्रजा साहूजी की अपेक्षा प्रतापसिंह से खुश थी। अंगरेजों ने अब साहूजी का पक्ष लिया और साहूजी को फिर से गद्दी पर बैठाने के बहाने कंपनी की सेना फ़ौरन मौके पर पहुंच गई। वहाँ पहुँच कर अंगरेजों ने देखा कि प्रतापसिंह का पक्ष अधिक मज़बूत है, इसलिये ऐन मौके पर साहूजी के साथ दगा कर वे प्रतापसिंह से मिल