भारत में अंगरेजी राज गए। देवीकोट का नगर और किला प्रतापसिंह ने इस कृपा के बदत में अंगरेजों को दे दिया। साहूजी को सदा के लिये पेन्शन टकर अलग कर दिया गया और प्रतापसिंह तओर का राजा बना रहा ! करनाटक में नवाव अनवरुद्दीन अंगरेज़ो पर मेहरबान था ही, इसीलिये फ्रांसीसी अनवरुद्दीन की जगह चंदासाहब को नवाब बनाना चाहते थे। दूप्ले ने मराठों को नकद धन देकर चंदासाहव को कैद ले छुड़वा लिया और फिर उसे करनाटक की गद्दो पर वैठाने का प्रयत्न किया। ३ अगस्त सन् १७४६ को आम्बूर की लड़ाई में फ्रांसीसियों की सहायता से अनवरुद्दीन का काम तमाम कर चंदासाहव करनाटक का नवाव बन गया। यहाँ तक दूप्ले को खासी सफलता हुई। किन्तु तञ्जोर अभी तक प्रतापसिंह के अधिकार में था और प्रतापसिंह अंगरेजों के पक्ष में था। दूप्ले ने इसके लिए दक्खिन के सूवेदार ही को बदलना चाहा । उसने नाज़िरजंग के विरुद्ध मुज़फ्फर- जंग के साथ साज़िश की। चचा की कैद से भागकर मुज़फ्फरजंग ने फ्रांसीसियों की सहायता से अपने तई दक्खिन का सूबेदार एलान कर दिया और चंदासाहब के साथ मिलकर सबसे पहले तोर पर चढ़ाई की। सूवेदार नाज़िरजंग ने तोर के राजा प्रतापसिंह की सहायता के लिए सेना भेजी। दोनों पक्षों के बीच एक गहरा संग्रास हुना जिसमें मुजफ्फरजंग फिर से कैद कर लिया गया। चंदा- साहब की जगह अनवरुद्दीन का बेटा मोहम्मद अली करनाटक का नवाब बना दिया गया और नाजिरजंग सूबेदारी की मसनद पर
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